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संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त करना कानूून में नहीं : छत्‍तीसगढ़ हाई कोर्ट

संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त करना कानूून में नहीं : छत्‍तीसगढ़ हाई कोर्ट

कोर्ट ने सुनवाई उपरांत अपने आदेश में कहा कि संदेह के लाभ पर आधारित दोषमुक्ति की परिकल्पना दंड प्रक्रिया संहिता में नहीं है।

       हमीदा सिद्धिकी- सीनियर एडवोकेट

राजन सिंह चौहान/

बिलासपुर। हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त करने की परिकल्पना दंड प्रकिया संहिता में नहीं है। यह न्यायिक रूप से विकसित अवधारणा है। इस कारण याचिकाकर्ता को पूर्णत दोषमुक्त करने का आदेश दिया है।

याचिकाकर्ता एमए हुसैन मध्यप्रदेश एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कार्पोरेशन अंबिकापुर में जिला प्रबंधक के पद में कार्यरत थे। उन्होंने 20 अगस्त 1989 को आरपी गुप्ता से 1345 रुपये की दर से 1740 साइकिल खरीदी थी। इसके लिए 23 लाख 75 हजार 800 रुपये स्थानीय वितरक को भुगतान किया गया। साइकिल खरीदी में भ्रष्टाचार की एसीबी से शिकायत की गई। एसीबी ने उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया।

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इसमें कहा गया कि स्थानीय बाजार में 1250 रुपये में मिलनी वाली साइकिल को अधिक कीमत में खरीदी कर शासन को दो लाख 28 हजार 800 रुपये का नुकसान पहुंचाया गया है। एसीबी ने एमए हुसैन के खिलाफ विशेष अदालत में चालान पेश किया। तीन दशक बाद एसीबी की विशेष अदालत अंबिकापुर ने अप्रैल 2018 में अधिकारी एमए हुसैन को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया।

30 वर्ष बाद भी संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किए जाने के खिलाफ एमए हुसैन ने अधिवक्ता हमीदा सिद्दिकी के माध्यम से हाइ र्कोर्ट में याचिका दाखिल की। इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता को सेवानिवृत्त देयक एवं अन्य देयक के लिए दावा करना है। आदेश में संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किए जाने पर शासन देयकों के भुगतान पर आपत्ति कर सकती है।

याचिका में जस्टिस संजय के. अग्रवाल के कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने सुनवाई उपरांत अपने आदेश में कहा कि संदेह के लाभ पर आधारित दोषमुक्ति की परिकल्पना दंड प्रक्रिया संहिता में नहीं है। यह न्यायिक स्वरूप से विकसित अवधारणा है। इसके साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पूर्णत दोषमुक्त करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के इस आदेश से याचिकाकर्ता गलत कार्रवाई करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर अलग से याचिका पेश कर सकते हैं।

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